जाल संरक्षण का महत्व क्या है? इसे पड़ने के बाद कभी भी पानी नहीं बर्बाद करेंगे।
जल संरक्षण का महत्व क्या है -
जल एक ऐसा तत्व है, जिससे जीवन सीधा जुड़ाव है। यानी
"जल नहीं तो जीवन नहीं," बिना जल के जीवन असंभव सा है। पानी की एक बूंद सागर के उस कंचन मोटी के समान है, जिसको बनाने में अनेकों-अनेक साल लग जते हैं।
पनी, मां प्रकृति हमें free में देती हैं, परंतु हम इसका मोल नहीं समझत पाते, और पनी बर्बाद करते हैं। Generally, पानी को खर्च करना कोई ग़लत बात नहीं है, प्रकृति मां ने हमें जरूरत से कही जादा पानी दे रखा है, परंतु जब हम जरूरत से अधिक, यानी, अनावश्यक पानी को खर्च करते हैं, तो यह एक दुश्मन बन जाता है, तथा जिसका फल आज भारत के अनेकों अनेक राज्यों में देखने को मिल रही है। कुछ राज्यों में तो पीने को भी पनी नसीब नहीं हो रहा है, ऐसे में हम पनी को बिना मतलब बहते रहते हैं। जहां पर एक मग से काम चल जाता है, वहां पर हम अपनी पनी की टोटी यानी taap को खुला छोड़ कर, ना जाने कितना पनी ऐसे ही बर्बाद कर देते हैं।
जल संरक्षण का अर्थ
पनी के संरक्षण का अर्थ है, जरूरत के अनुसार ही पनी खर्च करना। जब हम जरूरत से अधिक पनी खर्च करते है, तो यह पनी का दुरप्रयोग होता है।
पनी के संरक्षण का अर्थ है, जरूरत के अनुसार ही पनी खर्च करना। जब हम जरूरत से अधिक पनी खर्च करते है, तो यह पनी का दुरप्रयोग होता है।
पनी क्यों? काम पड़ता है-
दोस्तों जब वर्षा के समय पनी जमीन पर आता है, हो कुछ पानी धरती में चला जाता है, कुछ वापस भाप यानी evaporat हो जाता है, तथा जो पनी धरती और वास नहीं हो पाता, वह नदियों या नली के जरिए बह जाता है।
दोस्तों नदियों में बहने वाला पनी तो कृषि तथा समस्त जन का कल्याण करते हुए चली जाती है, परंतु नली और नलों का पनी अनायास ही बह जाता है। नदी और नलों का पनी बहकर समुद्र में मिल जाता है।
दोस्तों नदियों में बहने वाला पनी तो कृषि तथा समस्त जन का कल्याण करते हुए चली जाती है, परंतु नली और नलों का पनी अनायास ही बह जाता है। नदी और नलों का पनी बहकर समुद्र में मिल जाता है।
पानी की कमी किस वजह से होती है?
अब दोस्तों जो पनी धरती में गया, वह पनी पीने लायक हो जाता है, और नलों का पनी समुद्र में चला जाता है। समुद्र का पनी evaporat होता है, बदल बनते है और कई process के बाद पनी वापस धरती पर बरसकर वापस आता है। अब जैसा की आपको पता होगा कि हर जगह पक्की सड़कें बनती जा रहीं है, और कच्ची जमीन काम पड़ती जा रही है, तथा पेड़ भी खत्म होते जा रहे है, जिससे पनी रुक नहीं पता और नालियों में बह जाता है, इस कारण से यह धरती में बहुत ही कम मात्रा में जा पाता है। दोस्तों पनी का evaporation limited ही हो पाता है, तथा जो evaporat होता है, वहीं बारिश के रूप में वापस आता है, पर जैसा की मैने बताया बारिश का पानी पक्की सड़कें होने के कारण बह जाता है। तथा जो पनी धरती में होता है, उसे भी हम z- pum या tubal के जरिए बाहर निकालते जा रहें है, और उस पनी का अंधाधुंध बर्बादी करते है। जिससे पीने लायक पनी दिन पर दिन काम पड़ता जा रहा है, और खराब पनी जो पीने लायक नही है, वह बढ़ता जा रहा है, जिससे पनी की दिन - प्रतिदिन कमी होती जा रही है।जल संरक्षण की आवश्यकता क्या है?
दोस्तों यह पीने के लायक बनने के लिए ना जाने कितने ही, प्राकृतिक परिस्थितियों से गुजरने के बाद, पीने लायक बनता है। इसमें काफी समय भी लगता है, और हम इतने मूल्यवान पनी को बर्बाद करते देते है।दोस्तों पानी का इस्तेमाल हमें बड़ा ही सोच समझकर करना चाहिए। पानी की हर एक-एक बूंद समुद्र के उस कंचन मोती के समान है, जो कि मिलना बहुत ही मुश्किल से मिलता है। तथा हमें इसका इस्तेमाल बहुत ही सोच समझ कर करना चाहिए, वरना वो दिन दूर नहीं, जब पानी बर्बाद तो क्या पीने को भी नसीब नहीं होगा। दोस्तों आज काफी राज्य पानी की कमी से जूझ रहे हैं, और यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है, और कई राज्यों की समस्या बनती जा रही है।
लोग सोचें हैं कि हमारे अकेले के पानी बचाने से क्या होगा? पर दोस्तों बूंद बूंद से घड़ा भरता है। और अगर भविष्य में पानी काम पड़ा तो उसके जिम्मेदार आप नहीं होंगे, ये क्या कम है। आप खुद पानी का संरक्षण करें तथा ओरों को भी करायें।
तो आज अभी इसी वक्त प्रड़ लें की पानी बर्बाद नहीं करेंगे
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