मूर्ति पूजा सही है या गलत? मूर्ति पूजा क्या है? तथा मूर्ति पूजा का संपूर्ण इतिहास | मूर्ति पूजा और मानव समाज की भावनाए।


मूर्ति पूजा सही है या गलत,मूर्ति पूजा हिन्दू, इस्लाम, ईसाई मत और अन्य समुदाय।

Purti puja, idial worship

मूर्ति पूजा सही है या गलत?

मूर्ति पूजा सही है या गलत दोस्तों ये एक ऐसा टॉपिक है जिसपर हजारों सालों से विवाद होता रहा है। पर आज में आपको इसका सही-सही और सम्पूर्ण जानकारी देने वााल हैं, जिसको जानने के बाद आप कभी भी इस विषय को लेके और अधिक परेशान नहीं होंगे प्राचीन इतिहास से लेकर साइंस तक और साइंस से लेकर सच्चाई तक।

मूर्ति पूजा क्या है?

दोस्तों मुती पूजा में व्यक्ति अपने भगवान, पूर्वज या महान लोगों यानी जिनको वो अपना आदर्श मानते हैं उनकी प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करतें हैं। वो मूर्ति पत्थर की, मिट्टी की या फिर लकड़ी की भी हो सकती है। मूर्ति की प्रतिमा कई तरीके कि हो सकती है, जैसे- मानव रूपी प्रतिमा, पिंड रूपी प्रतिमा, पत्थर की गोल या किसी दूसरे अकर विकार की प्रतिमा या फिर किसी मृत व्यक्ति की कब्र की पूजा या किसी आदरणीय व्यक्ति के याद में बनाई गई कब्र की अराधना। ये सभी मूर्ति मुजा के प्रकार हैं। मूर्ति पूजा में किसी भी महान पुरुष या उसकी निशानी की अरधन होती है। 
Jesus Christ, yeshu Masih

मूर्ति पूजा का इतिहास।

इतिहास करो के अनुसार मूर्ति पूजा तो प्राचीन कल से ही होती आ रही है, पहले आदिवासी अपने अपने अलग-अलग काबिले बनाकर राहतें थें उन सभी के अपने-अपने कुल देवी या देवता होते थें। वे सभी उनकी पूजा किया करतें थें, वहीं अगर वैदिक काल की बात करें तो इसमें मूर्ति पूजा के साक्ष्य नहीं मिलते। वहीं द्वापर युग की बात करें तो भगवान कृष्ण के काल में लोग इन्द्र नामक देवता से जरूर डरते थे। भगवान कृष्ण ने ही उक्त देवी-देवताओं के डर को लोगों के मन से निकाला था। इसके अलावा हड़प्पा काल में देवताओं (पशुपति-शिव) की मूर्ति का साक्ष्य मिला है, लेकिन निश्चित ही यह आर्य और अनार्य का मामला रहा होगा।

प्राचीन अवैदिक मानव पहले आकाश, समुद्र, पहाड़, बादल, बारिश, तूफान, जल, अग्नि, वायु, नाग, सिंह आदि प्राकृतिक शक्तियों की शक्ति से परिचित था और वह जानता था कि यह मानव शक्ति से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है इसलिए वह इनकी प्रार्थना करता था। बाद में धीरे-धीरे इसमें बदलाव आने लगा। वह मानने लगा कि कोई एक ऐसी शक्ति है, जो इन सभी को संचालित करती है। वेदों में सभी तरह की प्राकृतिक शक्तियों का खुलासा कर उनके महत्व का गुणागान किया गया है। हालांकि वेदों का केंद्रीय दर्शन 'ब्रह्म' ही है। पर दोस्तों इतिहास में क्या क्या हुआ इसको कोई भी सही-सही नहीं बता सकता क्योंकि इतिहास में क्या हुआ यह कोई भी नहीं जानता हां पुस्तकों और शक्ष्यो के बल पर इतिहास का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
Shivling, shiv

किन-किन धर्मों में होती है मूर्ति पूजा?

दोस्तों यूं तो कई धर्मो में मूर्ति पूजा होती है जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पार्सिक, इसाई आदि। इन सभी धर्मों में मूर्ति की पूजा होती है पर इन्हीं धर्मों के और भी कई विभाजन हैं जिसके बरेमें हम और कभी बात करेंगे। इन धर्मों में भी अलग-अलग मत हैं और उन्ही मतो में कुछ मत मूर्ति पूजा के खिलाफ है। जैसे ईसाई धर्म की बात करें तो इसी धर्म के भी काफी सारे विभाजन हैं पर इसके मुख्य विभाजन हैं कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट।
यूं तो इसी धर्म में मूर्ति पूजा मना है पर कैथोलिक जो की ईसाई धर्म का पुराना मत है उसमें मूर्ति पूजा होती है। और अगर हम इसके बाद बने प्रोटेस्टेंट मत की बात करें तो इसमें मूर्ति पूजा नहीं होती। उसी प्रकार हिन्दू, मुस्लिम और भी जो धर्म है उनमें भी इसी प्रकार का विभाजन है।
Gautam buddha, Siddharth

मूर्ति पूजा सही है या गलत?

दोस्तों यूं तो मूर्ति पूजा पर काफीसारे विवाद है कई लोग मूर्ति मुजा का समर्थन करते हैं तो कई लोग मूर्ति पूजा का विरोध करतें है। मूर्ति पूजा सही है या गलत इसको समझने से पहले हमें पूजा क्या होती है ये समझना होगा।
पूजा - पूजा का आर्थ होता है सम्मान या श्रृद्धा प्रकट करना।
और मूर्ति का अर्थ होता है प्रतीक या प्रतिमा।

अगर हम साइंस की बात करें तो मूर्ति पूजा के काफी सारे सांइसटिफिक फायदे होते है जैसे की ध्यान में एकाग्रता आदि।
दोस्तों पूजा कहीं से भी गलत नहीं है क्योंकि मूर्ति पूजा में अपने  आराध्य की प्रतिमा बनाकर उसकी अराधना की जाती है आप अगर अपने आराध्य कि प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा यानी श्रृद्धा प्रकट करे तो उसमें क्या पुराई है। आप सोचकर देखें कि आपके पिता कि तस्वीर है वो महज ही एक तस्वीर है कागज और पैंट की बनी हुई पर आप उसी तस्वीर को देखकर अपने पिता को याद करते हैं कि नहीं वहीं कोई आपके पिता की तस्वीर की बुराई या अपमान करे जैसे कि उसपर थूक दे तो आप पर क्या बीतेगी। सोचकर देखें! उसी प्रकार जो लोग अपने आराध्य कि मूर्ति की पूजा करतें है आप उनका या मूर्ति का अपमान करें तो उन्हें भी ऐसा ही महसूस होता है। 

मूर्ति पूजा कहीं से भी गलत नहीं है अगर गलत है तो बस अपने आपको सही ठहराने की जिद और इसी जिद में कई लोग जाने अंजाने कितने अपराध करतें है। कोई यदि एक भी स्पष्ट कारण मूर्ति पूजा ना करने का बात सकता है तो बताए। आखिर क्यों लोग मूर्ति पूजा से परहेज़ करतें हैं, जब की जाने अंजाने वो खुद भी मूर्ति पूजा करते है। वो परम शक्ति यानी परमेश्वर हर एक कड़-कड़ में विद्यमान है ये समस्त संसार उसी से बना है तो अगर मूर्ति में कोई परमात्मा को देखता है तो उसमें क्या गलत है, जब की परमात्मा सर्व व्यापी है।
Happy, happiness

मूर्तियों का दुरप्रायोग।

दोस्तों मूर्ति या तस्वीर आज इतनी मात्रा में बन रही हैं कि उसका बड़े तौर पर अनादर हो रहा है, दीवाली में पुरानी गणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा को हटा कर नई प्रतिमा लतें हैं और उस पुरानी प्रतिमा को पीपल के वक्ष के नीचे या फिर नदियों में विसर्जित कर देते हैं पीपल के नीचे रखी हुई मूर्तियां जमीन पर या कूड़े तक पहुंच जाती है जिससे मूर्तियों का अपमान होता है। वहीं जो मूर्ति पानी में विसर्जित की जाती है वह विसर्जन इतनी मात्रा में होता है कि पानी खराब होता जा रहा है जल जीवों बड़ी मात्रा में खत्म होते जा रहें है। वैसे तो जल प्रदूषण का मुख्य कारण इंडस्ट्रियों से बहने वाला केमिकल और गंदगी है। जिसपर हमें वा सरकार को काम करना होगा। पर कहीं ना कहीं जो मूर्ति विसर्जित की जाती हैं उससे भी पानी कहीं ना कहीं दूषित होता है।

दूसरी तरफ अखबारों और पेंटिंग्स में भी तस्वीरे इतनी तेजी से छापी जा रही है कि उनका विसर्जन करना या सम्हाल कर रखना असम्भव है तो इसी कारण से मूर्तियों का बहुत ही अपमान हो रहा है। मूर्ति पूजा कोई गलत नहीं बल्कि यह तो ऐसा उत्तम कार्य है जिससे मनुष्य अपने अंदर के भाव वा प्रेम को प्रकट करता है, पर आज लोग मूर्ति पूजा को केवल और केवल फॉमेलिटी के तौर पर कर रहे है। 

दोस्तों स्मृति अराधना या मूर्ति पूजा को सही ढंग से समझना होगा। इसे अपने जीवन में उतारना होगा। कोई जरूरी नहीं है कि आप हर साल मूर्तियों को बदले, आप एक ही मूर्ति की अराधना करें मूर्ति को इस ढंग से बनाएं कि जिसे बार-बार बदलने की आवश्यकता ना हो जैसे पीतल या ठोस पदार्थ की मूर्ति बनाए और उसकी अराधना करें ताकि उसे बार-बार बदलने कि आवश्यकता ना हो। और मूर्तियों का अनादर न हो।  

दोस्तो आपको ये पोस्ट कैसी लगी जरूर बताए और अगर कोई सवाल पूछना हो तो कमेंट करके जरूर पूछें, और जितना हो इसे शेयर करें ताकि ये को महत्वपूरण जानकारी है ये साब तक पहुंचे। धन्यवाद।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान की मूर्ति को देखकर मन में अचानक से बुरे या सेक्सुअल विचार आना या भगवान को गाली देना | भगवान से डर लगना | Religious OCD

OCD क्या है ? ओसीडी के लक्षण | ओसीडी से निकालने का तरीका | ओसीडी हमेशा के लिए ठीक हो सकता है।